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प्रशासनिक अधिकारी पकड़ेगे, गाय, गौ सेवक नहीं गोवंश को सड़क से हटाने में असमर्थ मोहन सरकार केंद्र से मांगी मदद

प्रशासनिक अधिकारी पकड़ेगे, गाय, गौ सेवक नहीं गोवंश को सड़क से हटाने में असमर्थ मोहन सरकार केंद्र से मांगी मदद

प्रशासनिक अधिकारी पकड़ेगे, गाय, गौ सेवक नहीं गोवंश को सड़क से हटाने में असमर्थ मोहन सरकार केंद्र से मांगी म

रिपोर्ट सचिन श्रीवास्तव

गौ सेवक नहीं प्रशासनिक अधिकारी पकड़ेगे, गाय, विशेष अभियान आवारा मवेशी नियंत्रण के लिए, प्रमुख मार्गों पर आवारा मवेशियों की समस्या को लेकर एक नया आदेश जारी किया गया है राज्य सरकार ने आवारा मवेशी नियंत्रण के लिए 15 दिन का विशेष अभियान चलाने की घोषणा की है और इस अभियान के तहत प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारी सौंपी गई है, इस अभियान के तहत प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारी पूर्ण रूप से तय की गई है अब प्रशासनिक अधिकारी खुद मवेशियों को पकड़ने में जुटेगे, इस कदम से जहां एक और सरकार की किरकिरी हो रही है वही गौ सेवकों को इस जिम्मेदारी से वंचित कर दिया गया है हालांकि इस विशेष अभियान की घोषणा के साथ ही एक महत्वपूर्ण सवाल उठ खड़ा हुआ है गौ सेवकों जो पारंपरिक रूप से गौरक्षा के कार्यों में सक्रिय रहते हैं उन्हें इस अभियान में शामिल नहीं किया गया इस तरह के फैसले से लोगों के प्रति सरकार की प्राथमिकता पर सवाल उठना लाजिमी है इस समिति के फैसले से गौ सेवकों के प्रति काफी आक्रोश है गौ सेवकों को ना ही उन्हें अभियान के कार्यों में कोई भूमिका प्रदान की गई इसके अलावा गौ सेवकों को इस विशेष अभियान का हिस्सा बनाने की बजाय प्रशासनिक अधिकारियों को इस जिम्मेदारी सौंपने से सरकार की नीतियों पर चर्चा शुरू हो गई है गोवंश को सड़क से हटाने में असमर्थ मोहन सरकार ने केंद्र से मांगी मदद गौ सेवक संगठनों और अनेक समर्थको ने , सरकार के इस फैसले पर विरोध जताया है उनका कहना है कि गौ सेवक ही इस क्षेत्र मैं अनुभव और विशेषज्ञता रखते हैं , और उन्हें इस महत्वपूर्ण कार्य में शामिल किया जाना चाहिए इसके विपरीत प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं जिनके पास इस तरह के कार्यों का अनुभव नहीं है गौ रखने के लिए पर्याप्त जगह और चारा पानी की व्यवस्था नहीं है प्रशासनिक अधिकारी इस चुनौती को कितने प्रभावी ढंग से संभाल पाते हैं वही गौसेवकों की अनुपस्थिति ने राज्य के गौ रक्षा कार्यक्रम और उनकी भूमिका को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं यह स्पष्ट है कि आवारा मवेशियों की समस्याओं के समाधान के लिए उठाए गए इस कदम को लेकर सरकार और गौ सेवकों के बीच मतभेद है और यह विषय आगे की राजनीति और प्रशासनिक रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है इस विशेष अभियान की सफलता या बिफलता, भविष्य में ही स्पष्ट होगी लेकिन फिलहाल यह निर्णय सरकार और पार्टी दोनों के लिए चर्चा का विषय बन गया है बेसहारा मवेशी सडक़ पर, जाम के बन रहे हालात शहर में सडक़ो और बाजारों में मवेशियों की बढ़ती संख्या से शहरवासी परेशान हो चुके हैं। बारिश के मौसम में शहर में सडक़ों पर आवारा मवेशियों की संख्या काफी बढ़ गई है, ये पशु सडक़ों पर जहां-तहां बैठे रहते हैं, जिससे सडक़ों पर यातायात तो प्रभावित होता ही साथ ही हादसों का डर भी बना रहता है। ऐसा ही नजारा , बनखेड़ी नयाखेड़ा में मेन हाईवे चौक चौराहा बा सड़क समीप, चादोन रोड आए दिन देखने को मिलता है। यहां शराबी भी शराब पीकर मोटरसाइकिल बड़े बाहन से गुजरते हैं पुलिस प्रशासन मुकदर्शी बना बैठा है ऐसे शराबियों पर करवाई क्यों नहीं होती जनता के बीच ऐसी चर्चा चल रही है व उनके बाहन राजसात क्यों नहीं करते ऐसे शराबियों से आए दिन दुकान संचालक भी परेशान है ऐसे शराबियों को चुनिंदा कर कार्रवाई करें खुद तो गिरते फिरते हैं और दूसरों को मिटाते हैं ऐसा चर्चा का विषय है, जिसकी गाड़ी है फोन पर भी कार्रवाई होना चाहिए हां बीच तिराहे पर मवेशियों का झुंड यातायात को तो बाधित कर ही रहा है साथ ही हादसों का भी खतरा बना हुआ है। दुकान संचालकों का कहना है कि मवेशियों की लड़ाई में उनका भी उनका भी नुकसान होता है। ये मवेशी लड़ते लड़ते दुकानों तक पहुँच जाते हैं और उनकी लड़ाई में दुकान में तोडफ़ोड़ जैसे हालात हो जाते हैं।
कई बार हो चुके हादसे- शहर के बाजार और सडक़ों पर आवारा मवेशियों के चलते कई बार दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। कई लोग घायल हुए हैं तो कई लोगों की जानें जा चुकी हैं। पुलिस प्रशासन हेलमेट ना लगाने वाले वाहन चालकों पर तो जमकर कार्रवाही कर जुर्माने की राशि वसूल रहे हैं। लेकिन इन मवेशियों की वजह से हो रहे हादसों पर किसी की ध्यान नहीं जाता। इसका जिम्मेदार ना तो पशु पालक बनता है, ना ही नगर निगम और ना ही पुलिस प्रशासन।
सडक़ों पर देखने को मिलती है कुश्ती- शहर में बीच सडक़ पर बैलों की लड़ाई होना आम बात हो गई है। खासतौर पर भीड़भाड़ वाले मार्गों और बाजारों में मवेशियों के कुश्ती के नजारे आएदिन देखने को मिलते हैं। ऐसे में जहाँ दुकान संचालक इन मवेशियों से परेशान हैं तो वहीं राहगीर की भी जान खतरे में बनी हुई है।

दैनिक समर्थ भास्कर

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